प्रकृति का खिंचाव बहुत गहरा है किसी व्यक्ति को थोड़ी भी भीतर की सुध मिल जाए,वो अकारण वृक्ष के नीचे घंटो बैठा रहेगा,नदी के जल की कल कल को तट पर बैठ कर घंटो सुनता रहेगा,चिड़ियों की मधुर ध्वनि में आनंदित डूबा रहेगा क्योंकि ऐसी नाद का अनुभव भीतर हो चुका है,सभी प्राकृतिक ध्वनियां आत्मा का आहार है, इन ध्वनियों के श्रवण से अनाहत चक्र जाग्रत होता है। - गुरु संदीपन